मीरा :
कानाए, अब आप पूरी तरह ठीक दिखाई दे रही हैं ।

आशा :
पहले से और ज़्यादा अच्छी लग रही हैं न ?

प्रदीप :
हाँ, बधाई हो !

कानाए :
शुक्रिया ।

अगर मैं अकेले बीमार पड़ी होती तो शायद आज ज़िन्दा न होती ।

आशा :
क्या मज़ाक कर रही हो ?

लेकिन सच मानो, उस समय मुझे भी बहुत डर लग रहा था ।

कानाए :
माफ़ कीजिए मेरी वजह से आप लोगोंको बड़ी परेशानी हुई ।

मीरा :
आप माफ़ी क्यों माँग रही हैं ?

आशा :
क्योंकि जापानी लोग दूसरों का बड़ा ख़याल रखते हैं ।

मीरा :
मैं समझती हूँ ।

लेकिन जब-जब कानाए माफ़ी माँगती हैं, मुझे कुछ कटी-कटी लगती हैं ।

और फिर कानाए कुछ गलती भी नहीं करतीं ।

कानाए :
आपको ऐसा लगा ?

मेरा यह मतलब बिल्कुल नहीं था ।

मीरा :
आखिर हम तो साथी हैं न ?

कानाए :
धन्यवाद ।

प्रदीप :
कानाए धन्यवाद भी ज्यादा कहती हैं ।

कानाए :
हम लोग इसे एक तरह का शिष्टाचार मानते हैं ।

माँ बचपन में मुझे धन्यवाद कहने के लिए बार-बार कहती थीं ।

मेरे विचार में भारतीय लोग ही धन्यवाद कम कहते हैं ।

मीरा :
हमें अपने करीबी लोगों को धन्यवाद कहने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती ।

आशा :
मुझे लगता है कि हमारे मूल्यों में ज़रा अंतर है ।

यह नहीं कहा जा सकता कि कौन-सा बेहतर है ।

प्रदीप :
मैं तुमसे सहमत हूँ ।

कानाए :
भारत में आकर मैं सोचने लगी हूँ कि जो मन में है उसे शब्दों में प्रकट करना चाहिए ।

आशा :
मैंने भी यह सीखा कि दूसरों को अपनी बात अंत तक कहने देना चाहिए ।

मीरा :
क्या बात है !!

लेकिन केवल अंत तक कहने देना ही नहीं, अंत तक सुनना भी ज़रूरी है !